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महान्यायवादी
महान्यायवादी

सन्दर्भ:

: वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने “दूसरे विचार” के बाद भारत के लिए अगला महान्यायवादी (Attorney-General) बनने के सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।

महान्यायवादी जुड़े प्रमुख तथ्य:

: के के वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितंबर 2022 को समाप्त हो रहा है,ऐसे में अगले महान्यायवादी की अविलंब नियुक्ति जरुरी है।
: भारत का संविधान महान्यायवादी के पद को एक विशेष पायदान पर रखता है।
: महान्यायवादी भारत सरकार के पहले कानून अधिकारी हैं और देश की सभी अदालतों में सुनवाई का अधिकार रखते हैं।
: संविधान का अनुच्छेद 76(2) कहता है, “अटॉर्नी जनरल का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह दे और कानूनी चरित्र के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे, जो समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा उन्हें संदर्भित या सौंपा गया है”।
: महान्यायवादी को “इस संविधान या उस समय के लिए लागू किसी अन्य कानून के तहत या उसके द्वारा प्रदत्त कार्यों का निर्वहन” भी माना जाता है।
: अनुच्छेद 88 के तहत, “भारत के अटॉर्नी-जनरल को किसी भी सदन, सदनों की किसी भी संयुक्त बैठक और संसद की किसी भी समिति, जिसका वह सदस्य नामित किया जा सकता है, की कार्यवाही में बोलने और अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा”।
: हालांकि, वह सदन में “इस अनुच्छेद के आधार पर वोट देने का हकदार नहीं होगा“।
: साथ ही, भारत के लिए ए-जी, इंग्लैंड और वेल्स के लिए ए-जी और संयुक्त राज्य अमेरिका के ए-जी की तरह कैबिनेट का सदस्य नहीं है।
: अनुच्छेद 76(1) के तहत, ए-जी को राष्ट्रपति द्वारा उन व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाता है जो “सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य” हैं।
:अनुच्छेद 76(4) कहता है, “अटॉर्नी-जनरल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करेगा और राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक प्राप्त करेगा।”


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By gkvidya

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