सन्दर्भ:
: सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2022 को कर्नाटक हिजाब मामले में एक विभाजित फैसला सुनाया, तथा इस मामले को उचित दिशा-निर्देशों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
क्या है मामला:
: मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर स्कूल और कॉलेज आने का मामला अब कर्नाटक में राजनीतिक बनता जा रहा है, लगभग एक महीने से चल रहे इस विवाद ने अब अंतर्राष्ट्रीय खबरों में भी अपनी जगह बना ली है, वहीं यह विवाद अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है।
हिजाब मामले में बिजो इमैनुएल फैसला:
: अपने फैसले में, न्यायमूर्ति धूलिया ने बिजो इमैनुएल मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि यह “इस मुद्दे को पूरी तरह से कवर करता है”।
: अगस्त 1986 में, जस्टिस ओ चिन्नप्पा रेड्डी और जस्टिस एम एम दत्त की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य में, जेहोवा के साक्षी संप्रदाय के तीन बच्चों को सुरक्षा प्रदान की, जो उनके स्कूल में राष्ट्रगान गायन में शामिल नहीं हुए थे।
: अदालत ने कहा कि बच्चों को जबरन राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करना उनके धर्म के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
: बच्चों के पिता वी.जे. इमानुएल ने याचना की थी कि जेहोवा के साक्षियों के लिए केवल जेहोवा की उपासना की जानी चाहिए।
: चूंकि राष्ट्रगान एक प्रार्थना थी, इसलिए उनके बच्चे सम्मान के साथ खड़े हो जाते थे, लेकिन उनके विश्वास ने उन्हें इसे गाने की अनुमति नहीं दी।
: अदालत ने यह भी कहा था कि केरल उच्च न्यायालय ने इस मामले में जांच की थी कि क्या राष्ट्रगान में कोई “शब्द या विचार है … जो किसी की धार्मिक संवेदनशीलता को ठेस पहुंचा सकता है”, इसने “स्वयं को गलत दिशा दी”, क्योंकि “यह बिल्कुल भी सवाल नहीं है”।
बिजो इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य का मामला क्या है:
: 1985 का यह मामला बेहद महत्वपूर्ण समझा जाता है, केरल के एक स्कूल में असेंबली के दौरान तीन बच्चे राष्ट्रगान नहीं गा रहे थे, ये बच्चे थे- बिजो इमैनुएल (15) और उसकी दो बहनें बीनू मोल (13) और बिंदु (10) .
: ये तीनों बच्चे इसाई धर्म के जेहोवा विटनेस संप्रदाय से आते थे, जो किसी पूजा में यकीन नहीं रखते थे और राष्ट्रगान गाना भी इनके लिए मूर्तिपूजा जैसा ही था।
: तीनों बच्चों को राष्ट्रगान न गाने की बात पर स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था।
: इस वाकया पर ये बच्चे हाई कोर्ट गए, जहां दो बार उनकी अर्ज़ी को ठुकरा दिया गया।
: इस पर बच्चे हाई कोर्ट गए, जहां दो बार उनकी अर्ज़ी को ठुकरा दिया गया।
: इसके बाद, वह सुप्रीम कोर्ट गए जहां स्कूल को आर्टिकल 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ) और आर्टिकल 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत अपने अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई।