सन्दर्भ:
: ओडिशा के सहस्राब्दी कटक शहर की प्रसिद्ध सिल्वर फिलाग्री (रूपा ताराकासी) को हाल ही में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ।
रूपा तारकासी के बारे में:
: यह सबसे उत्कृष्ट चांदी शिल्पों में से एक है।
: यह सदियों पुराना, परिष्कृत शिल्प ओडिशा के चांदी के शहर कटक में प्रचलित है।
: ऐसा माना जाता है कि इसका अस्तित्व 12वीं शताब्दी में हुआ था।
: मुगलों के अधीन इस कला को काफी संरक्षण मिला।
: इस फिलाग्री कार्य से जुड़े कलाकारों को “रूपा बनियास” या “रौप्यकारस” (उड़िया में) कहा जाता है।
: यह शिल्प कौशल विभिन्न वस्तुओं के निर्माण तक फैला हुआ है, जिसमें ओडिसी नर्तकियों द्वारा पहने जाने वाले आभूषण, सजावटी कलाकृतियाँ, सहायक उपकरण और धार्मिक और सांस्कृतिक टुकड़े शामिल हैं।
रूपा ताराकासी हेतु प्रक्रिया:
: शिल्प के इस कार्य में, चांदी की ईंटों को पतले, महीन तारों (तारा) या पन्नी में बदल दिया जाता है, जिससे सभी डिजाइनों (कासी) के साथ चांदी की फिलाग्री बनाई जाती है।
: जबकि मुख्य धातु मिश्र धातु में चांदी के विभिन्न ग्रेड का उपयोग किया जाता है, कारीगर तांबा, जस्ता, कैडमियम और टिन जैसी अन्य धातुओं का भी उपयोग करते हैं।