अर्थशास्त्र एक विषय के रूप में बहुत महत्त्व रखता है क्यों की दैनिक जीवन में हम अनेक आर्थिक अवधारणाओं जैसे वस्तुएं ,बाजार, मांग,आपूर्ति, कीमत,मुद्रास्फीति, कर, ऋण, ब्याज, बैंकिंग आदि का प्रयोग करते हैं। ऐसे ही हम विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के आय के वितरण ,किसी कार्य के लिए बजट बनाना,काम से लाभ कमाना,बैंक से लेन देंन करना जैसे निर्णय लेते रहते है,इसी प्रकार हम अपने देश की आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान रखने के साथ साथ विश्व की आर्थिक गतिविधियों भी नज़र रखते है साथ ही इससे जुड़ीं हर प्रकार की सूचनाएं भी एकत्रित करते है।
अर्थशास्त्र
अर्थ शास्त्र
धन अध्ययन करना
धन संबंधी मामलों का अध्ययन, यहां सिद्धांत प्रयोग परिणाम की बात होती है
Economics (अर्थशास्त्र)—- Oikonomia(ग्रिक भाषा)
Oikos Nomos
घरेलु प्रबद्ध
” घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति या प्रबंधन ”
अंतर
अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र
- इसमें सभी आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता है। 1.इसमें वस्तुओ और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोगकाअध्ययनकिया जाता है।
2.उत्पादक उपयोग व निवेश की अर्थव्यवस्था की आधारभूत 2:आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक एडम स्मिथ की वेल्थ ऑफ़ नेशंस(1761)
गतिविधियां है।
आर्थिक विकास एवं आर्थिक समृद्धि
आर्थिक समृद्धि आर्थिक विकास
1.मात्रात्मक परिणाम 1. गुणात्मक परिणाम
2.साधन 2. साध्य
3.विकास की गारंटी नहीं 3. विकास की गारंटी
4.मापन GDP प्रति व्यक्ति आय 4.HDI जीवन प्रत्याशा पर मापन
5.व्यक्ति या समाज के लिए प्रथम पद 5.व्यक्ति या समाज के लिए अंतिम पद
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
प्राथमिक: प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से जुड़ा हो कृषि , पशुपालन, खाद्यान्न मछली।
द्वितीयक: प्राकृतिक पदार्थों का प्रसंस्करण विनिर्माण गैस, निर्माण सड़क।
तृतीयक: सेवा देना,रिटेल,बैंक,आईटी,संचार,मनोरंजन रियल स्टेट।
चतुर्थक : शिक्षा,पब्लिक सेक्टर,RBI,बुद्धिजीवी वर्ग।
पंचम :PM मंत्रिमंडल नीति,आयोग नीति निर्धारक,उच्च अधिकारी गोल्ड कलर जॉब कहते हैं।
अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण
राज्य के हस्तक्षेप के आधार पर विकास के आधार पर
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था 1.विकसित अर्थव्यवस्था
- समाजवादी अर्थव्यवस्था 2: विकासशील अर्थव्यवस्था
- .मिश्रित अर्थव्यवस्था 3. अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था-
- अनियंत्रित या बाजार अर्थव्यवस्था।
- सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम।
- बाजार की शक्तियों द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था।
- बाजार द्वारा उत्पादन की प्रकृति और मात्रा का निर्धारण।
- बाजार के लाभ पर आधारित अर्थव्यवस्था।
- सामाजिक या लोक कल्याण का गुट।
समाजवादी अर्थव्यवस्था-
- अनियंत्रित या योजना विथ अर्थव्यवस्था।
- इसमें सरकार की व्यापक एवं नियंत्रण कार्य भूमिका।
- सरकार द्वारा उत्पादन की प्रकृति और मात्रा का निर्धारण।
- बाजार की शक्तियों की भूमिका गौर।
- अधिकतम सामाजिक कल्याण पर आधारित अर्थव्यवस्था।
मिश्रित अर्थव्यवस्था-
1.पूंजीवादी और समाजवादी दोनों ही लक्षण।
- सरकार के साथ की बाजार की शक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका।
- बाजार की गतिविधियां राज्य द्वारा लोक कल्याण के संदर्भ में विनियंत्रित।
- विशेषकर 1991 के नवीन सुधारों की देन।
- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था का अच्छा उदाहरण (70% पूंजीवादी + 30% समाजवादी )
विकसित अर्थव्यवस्था –
1.जहां औद्योगिकरण हो चुका हो।
- GDP मे उद्योग की भागीदारी उच्च हो।
- कृषि पर लोगों की निर्भरता कम हो।
- सेवा क्षेत्र तथा उद्योग का योगदान।
- उच्च स्तरीय अवसंरचना विकास।
विकासशील अर्थव्यवस्था –
1.GDP मे कृषि की प्रतिसत्ता कम हो रही हो।
- संक्रमण का दौर शुरू हुआ हो( कृषि से उद्योग की ओर)
- औद्योगिकरण शुरू हो गया हो जैसे -भारत।
- द्वितीयक एवं विशेषकर तृतीय क्षेत्र का क्रमिक योगदान।
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था –
1.GDP मूल रूप से कमाई कृषि से ही होती है।
- उद्योगी करण अभी भी शुरू नहीं हुआ है जैसे भूटान अफ्रीका।
- सेवा क्षेत्र की स्थिति पिछड़ी हुई विकास के ठोस संकेत नहीं।
विश्व बैंक द्वारा नई भूमिका
1.2020 मे WB ने तमाम देशो के विकास के पैमाने के लिए विकसित और विभिन्न श्रेणियां हटा दी है।
- साथ ही भारत को विकासशील श्रेणी से बाहर कर दिया है
- भारत को निम्न मध्यम आय वाले देश की श्रेणी में रखा है।
वर्गीकरण की चार श्रेणियां
1.निम्न आय वाली अर्थव्यवस्था
- निम्न मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था
- उच्च मध्यम आय वाले अर्थव्यवस्था
- उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था
-विश्व बैंक का तर्क है कि विकसित और विकासशील देशो का पुराना वर्गीकरण वर्तमान मे अप्रसंगिक।
-देशो के विकास को आंकने का उचित पैमाना नहीं है यह
-नया वर्गीकरण आर्थिक रूप के साथ ही सामाजिक विकास के संकेतको पर आधारित होने के कारण अधिक अप्रासंगिक
-भारत को निम्न माध्यम आय वर्ग मे डाला गया है BRIES मे भारत के ऊपर उच्च माध्यम आयवर्ग मे है।
आजादी से पूर्व अर्थव्यवस्था
1.दोषपूर्ण भू राजस्व प्रणाली, दयनीय स्थिति कृषि के पैटर्न में बदलाव तथा खाद्यान्न से वाणिज्यिक SMES का पतन।
- पूंजीगत उद्योगों के विकास हेतु सरकारी प्रोत्साहन नहीं था।
3.तकनीक कुशल मानव संसाधन एवं पूंजी का अभाव।
- विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रक के क्रमश 10% तथा 15% लोगों को ही रोजगार।
5.औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव
- भारत कच्चे माल का स्रोत तथा निर्मित उत्पादों हेतु बाजार भाव।
- भारत का आधे से अधिक व्यापार तो केवल इंग्लैंड तक सीमित रहा।
- स्वेज नहर खुलने से भारत के व्यापार पर अंग्रेजी नियंत्रण और भी कठोर.
- निम्न स्तरीय आर्थिक विकास,व्यापक गरीबी व बेरोजगारी।
- औपनिवेशिक हितो पर आधारित आधारभूत संरचना का विकास।
आजादी के बाद अर्थव्यवस्था (1950-1990)
- संविधान निर्माताओं ने इसके माध्यम से समाजवादी स्वरूप अपनाया।
- अपनाने का प्रमुख कारण ब्रिटिश पूंजीवादी व्यवस्था का कूट अनुभव।
- देश में आर्थिक विकास के साथ ही सामाजिक एवं लोक कल्याण को भी महत्व देना था जो कि औपनिवेशिक काल में सदैव उपेक्षित रहा था।
- पूंजीवादी व्यवस्था को अपनाने का कोई अवसर नहीं था क्योंकि अधिक जनता गरीब थी।
- देश में कोई औद्योगिक घराना पूंजीपति वर्ग नहीं था जो देश मे निवेश करें।
- इसलिए सरकार ने स्वयं जिम्मेदारी लेते हुए DPSP के माध्यम से समाजवादी स्वरूप अपनाया।
समाजवादी स्वरूप ही क्यों अपनाया
- सोवियत संघ प्रतिमान था जहां निजी क्षेत्र के लिए विशेष भूमिका नहीं थी।
- भारत में इसे अपनाने के बाद नई नई एवं गांधीवादी स्वरूप अपनाया।
- भारतीय समाजवाद अपनी प्रकृति में इसलिए विशिष्ट था कि इसमें उत्पादन और वितरण के साधनों समाज के अधिकतम नियंत्रण को स्वीकार किया था किंतु सोवियत संघ की तरह निजी संपत्ति के लगभग पूर्णता उन्मूलन जैसे कारक को शामिल नहीं किया गया था अतः यह संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता का ही परिचय था कि उन्होंने भविष्य में समाजवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत ही निजी क्षेत्र के लिए व्यापक संभावनाओं के अवसर को स्थान प्रदान कर दिया था।
- विदिशा के शासन की तहत अंगूठा की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए निजी क्षेत्र एवं पूंजीवादी शक्तियों की आवश्यकता है परंतु संविधान निर्माता औपनिवेशिक शासन के पोषण कारी स्वरूप से भी परिचित थे इसलिए राज्य ने नियंत्रित अर्थव्यवस्था अर्थात समाजवाद उनके लिए बेहतर विकल्प था।
- औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948 तथा भारतीय संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों का भी यही दृष्टिकोण था संभवत यही कारण था कि देश की पहली सरकार ने देश के आर्थिक विकास के समाजवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत नियोजन प्रणाली को अपनाया।