सन्दर्भ:
: भारत के केंद्रीय गृह मंत्री ने कोलकाता में ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Inshwar Chandra Vidyasagar) को उनकी 205वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बारें में:
: 19वीं सदी के समाज सुधारक, शिक्षाविद् और लेखक, विद्यासागर को “आधुनिक बंगाली गद्य के जनक” और बंगाल पुनर्जागरण के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है।
: विद्यासागर (ज्ञान का सागर) और दयार सागर (दया का सागर) दोनों नामों से जाने जाते हैं।
: इनका जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल प्रेसीडेंसी के मिदनापुर जिले के बिरसिंहा गाँव में हुआ था।
: प्रारंभिक जीवन अत्यंत गरीबी में बीता, फिर भी उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी अध्ययन में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
: उन्होंने कानून की परीक्षा (1839) उत्तीर्ण की और फोर्ट विलियम कॉलेज (1841) में संस्कृत विभागाध्यक्ष बने।
: बाद में उन्होंने कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य के रूप में कार्य किया और गैर-ब्राह्मणों और महिलाओं के लिए शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करने का समर्थन किया।
: उन्होंने बोर्नो पोरिचॉय (1855) नामक पुस्तक लिखी, जो बंगाली वर्णमाला की प्राथमिक पाठ्यपुस्तक है और आज भी प्रयोग की जाती है।
: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:-
- सामाजिक सुधार: हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856, बाल विवाह उन्मूलन और बहुविवाह पर प्रतिबंध के लिए अभियानों का नेतृत्व किया।
- महिला शिक्षा: रूढ़िवादी विरोध के बावजूद महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के द्वार खोलते हुए, लड़कियों के लिए कई स्कूलों की स्थापना की।
- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: बंगाली भाषा और गद्य का आधुनिकीकरण करके, उन्होंने एक साझा बंगाली पहचान को पोषित किया, जो राष्ट्रवादी जागृति का अग्रदूत था।
- हाशिए पर पड़े लोगों का सशक्तिकरण: शिक्षा में जातिगत बाधाओं को तोड़ते हुए, निम्न-जाति के छात्रों के लिए शिक्षा के द्वार खोले।
- जमीनी स्तर पर कार्य: अपना बाद का जीवन करमाटांर (अब जामताड़ा, झारखंड) में संथालों के बीच बिताया, जहाँ उन्होंने स्कूल, वयस्क साक्षरता केंद्र और निःशुल्क क्लीनिक स्थापित किए।
: संगठन जिससे जुड़े थे:-
- संस्कृत महाविद्यालय, कलकत्ता (प्रधानाचार्य, 1851-1858)।
- बेथ्यून स्कूल, कलकत्ता (सहयोगी, बालिका शिक्षा के विस्तार में सहायक)।
- बंगाल पुनर्जागरण के दौरान छात्र संघ और शैक्षिक पहल।
- उनके कार्यों ने बाद में ब्रह्म समाज के प्रगतिशील सुधार अभियानों को प्रेरित किया, जिससे राजा राम मोहन राय की विरासत आगे बढ़ी।
