संदर्भ:
: भारत, राजेंद्र चोल प्रथम के उत्तरी अभियान की 1000वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिसके परिणामस्वरूप गंगईकोंडा चोलपुरम (Gangaikonda Cholapuram) की स्थापना हुई, जो एक भव्य चोल राजधानी और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
गंगईकोंडा चोलपुरम के बारें में:
: यह 1025 ई. से 1279 ई. तक चोलों की शाही राजधानी थी, जिसकी स्थापना राजेंद्र चोल प्रथम ने की थी।
: तमिलनाडु के अरियालुर में स्थित, शहर में महल, एक विशाल जल भंडार (चोल गंगम), और बृहदीश्वर मंदिर (गंगईकोंडा चोलिसवरम) थे।
: इसके निर्माता राजेंद्र चोल, जिन्होंने ने गंगा के मैदानों में अपने विजयी सैन्य अभियान के बाद इस शहर का निर्माण कराया था।
: उन्होंने ‘गंगईकोंडा चोलन’ की उपाधि धारण की और गंगा जल लाकर एक तालाब में भरते थे, जो उत्तर पर दक्षिणी प्रभुत्व का प्रतीक था।
: इस स्थापत्य की विशेषताएँ:-
- भगवान शिव को समर्पित गंगईकोंडा चोलिस्वरम मंदिर, तंजावुर बृहदीश्वर मंदिर की भव्यता को प्रतिबिम्बित करता है।
- इसमें जटिल नक्काशी, भव्य विमान और एक अनोखा जलस्तंभ (विजय का तरल स्तंभ) – चोल गंगम – मौजूद है।
- शिलालेखों और तमिल साहित्यिक कृतियों के अनुसार, इस शहर में कभी किलेबंद महल, अनेक शाही इमारतें और चौड़ी, सुनियोजित सड़कें हुआ करती थीं।
: सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व:-
- गंगईकोंडा चोलपुरम दो शताब्दियों से भी अधिक समय तक दक्षिण भारत की राजनीति, व्यापार और संस्कृति का केंद्र रहा।
- यह उत्तर में तुंगभद्रा से लेकर दक्षिण में श्रीलंका तक चोल प्रभुत्व का प्रतीक था।
- आज, यह तंजावुर और दारासुरम के मंदिरों के साथ यूनेस्को की विश्व धरोहर ‘महान जीवित चोल मंदिरों’ में से एक है।
: अभिलेखीय साक्ष्य:-
- तिरुवलंगडु और करंथई ताम्रपत्र, कलिंगट्टुपरानी और मुवर उला के साथ, राजधानी के गौरव का दस्तावेजीकरण करते हैं।
- वीर राजेंद्र के शिलालेखों में महल को चोल-केरल तिरुमालीगई कहा गया है, जो राजवंश की उपाधियों और राजनीतिक दृष्टि को दर्शाता है।