सन्दर्भ:
:पुणे में तीन निजी स्कूल के शिक्षकों पर किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें कथित तौर पर कक्षा 10 के तीन छात्रों को Corporal Punishment अर्थात पिटाई की गई थी, और उन्हें आंतरिक मूल्यांकन में खराब ग्रेड देने की धमकी दी गई थी।
शारीरिक दंड (Corporal Punishment) के बारें में:
:परिभाषा के अनुसार,Corporal Punishment का अर्थ है शारीरिक दंड,जबकि भारतीय कानून में बच्चों को लक्षित ‘शारीरिक दंड’ की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।
:नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 धारा 17(1) के तहत ‘शारीरिक दंड’ और ‘मानसिक उत्पीड़न’ को प्रतिबंधित करता है और बनाता है यह धारा 17(2) के तहत दंडनीय अपराध है।
:राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी स्कूलों में शारीरिक दंड को खत्म करने के लिए दिशानिर्देशों के अनुसार, शारीरिक दंड को किसी भी कार्रवाई के रूप में समझा जाता है जिससे बच्चे को दर्द, चोट/चोट, और असुविधा होती है, चाहे वह हल्का क्यों न हो।
:मानसिक उत्पीड़न, इस बीच, किसी भी गैर-शारीरिक उपचार के रूप में समझा जाता है जो बच्चे के शैक्षणिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए हानिकारक है, जिसमें व्यंग्य, नाम पुकारना और अपमानजनक विशेषणों का उपयोग करना, डराना, बच्चे के लिए अपमानजनक टिप्पणियों का उपयोग करना,किसी बच्चे का उपहास करना या उसे नीचा दिखाना,बच्चे को शर्मसार करना आदि शामिल है।
कानून के तहत क्या प्रावधान हैं:
:शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 17, शारीरिक दंड पर पूर्ण रोक लगाती है।
:यह बच्चों के शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न को प्रतिबंधित करता है और दोषी व्यक्ति के खिलाफ ऐसे व्यक्ति पर लागू सेवा नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान करता है।
:किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 में बच्चों के साथ क्रूरता के लिए सजा का प्रावधान है।