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सन्दर्भ:
:12 जुलाई 2022 को त्रिपुरा ने प्रसिद्ध सप्ताह भर चलने वाले पारंपरिक Kharchi Festival (खारची महोत्सव) की शुरुआत की, जहां त्रिपुरा के पूर्वी बाहरी इलाके खैरपुर में हजारों भक्तों की उपस्थिति में 14 देवताओं की पूजा की जाती है।
:त्रिपुरा विधान सभा के अध्यक्ष रतन चक्रवर्ती ने त्रिपुरा के हाउरा नदी में देवताओं के स्नान जुलूस के साथ उत्सव की शुरुआत की।
Kharchi Festival (खारची महोत्सव) प्रमुख तथ्य:
:खारची पूजा मुख्य रूप से एक आदिवासी त्योहार है लेकिन इसकी उत्पत्ति हिंदू धर्म से हुई है।
:यह मुख्य रूप से एक आदिवासी त्योहार है लेकिन पूरे भारत और बांग्लादेश से भी भक्त और संत उत्सव में भाग लेते हैं।
: Kharchi Festival का शाब्दिक अर्थ है ‘पापों की सफाई’, जहां खार का अर्थ है पाप और ची का अर्थ है सफाई।
:त्योहार के दौरान, केवल 14 देवताओं के सिर की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान शिव, दुर्गा, विष्णु, लक्ष्मी, वाणी या सरस्वती, कुमार या कार्तिकेय, गणपा या गणेश, ब्रह्मा, पृथ्वी, अब्दी या समुद्र, गंगा, अग्नि, कामदेव और हिमाद्रि,सिख या शामिल हैं।
:इन 14 देवताओं में से पूरे वर्ष में केवल 3 की पूजा की जाती है, जबकि अन्य 11 मूर्तियों को त्योहार समाप्त होने के बाद अंदरमहल में रखा जाएगा।
मिथक है:
:त्रिपुरा शाही परिवार की “राजमाला” के अनुसार, रानी हिरावती एक बार महारानी नदी में स्नान करने गई और एक जंगली भैंस को 14 देवताओं का पीछा करते हुए देखा।
:रानी के कपड़े की मदद से देवता जानवर को मारने में कामयाब रहे।
:हिरावती की सहायता से प्रसन्न होकर देवताओं ने महल का दौरा किया और शाही परिवार ने जंगली भैंसों की बलि देकर पूजा की।