सन्दर्भ:
: मणिपुर के सेनापति जिले के पुरुल गांव की पौमई नागा जनजाति (Poumai Naga Tribe) ने अपने क्षेत्र में जंगली जानवरों और पक्षियों के शिकार, जाल बिछाने और मारने पर प्रतिबंध लगाकर वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
पौमई नागा जनजाति के बारे में:
: पौमई नागा जनजाति एक स्वदेशी जातीय समूह है जो मुख्य रूप से मणिपुर के सेनापति जिले और नागालैंड के कुछ हिस्सों में निवास करता है।
: पौमई की कुल आबादी का लगभग 95.7% मणिपुर के सेनापति जिले में है।
: यह मणिपुर की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी नागा जनजातियों में से एक है।
: पौमई जिस भाषा में बात करते हैं उसे “पौला” के नाम से जाना जाता है।
: पौमई समुदाय में ईसाई धर्म प्रमुख धर्म है।
: प्राचीन काल में मणिपुर और नागालैंड के सभी आदिवासी क्षेत्रों में उनके पौली (मिट्टी के बर्तन) और पौताई (पौ नमक) उत्पादन के बारे में अच्छी तरह से जाना जाता था।
: पौमई नागा जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है, और अब पौमई गांवों में स्थानांतरित खेती का प्रचलन बहुत कम है।
: लोकप्रिय त्यौहार- पाओनी, डोनी, लाओनी, दाओनी, रूनी, डुहनी, लौकानी, थौनी, खिइनी, ताइथौनी, आदि।
: लाओनी चावल रोपाई के बाद पौमई गांवों में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।