चर्चा में क्यों है-कोलकाता में होने वाले दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा हेतु अंतर सरकारी समिति द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है।
इस तरह भारत से अब कुल 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्वों को यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में किया जा चूका है।
महत्त्व क्या है –यूनेस्को की सूची में शामिल करने के बाद दुर्गा पूजा के स्थानीय श्रद्धालुओं,पारंपरिक शिल्पकारों,कलाकरों,डिज़ाइनरों,कलाकारों,और बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने वालों के साथ ही दुर्गा पूजा के उत्सव में भाग लेने वाले पर्यटकों और आनेवाले लोगों को प्रोत्साहन मिलेगी।
दुर्गा पूजा-आदि शक्ति,ब्रह्माण्ड की नारी ऊर्जा कही जाने वाली,शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा का आह्वान और पूजन होता है,जो पांच दिनी त्यौहार होता है जिसमे नौ दिवसीय नवरात्री उत्सव के पांचवी रात्रि से प्रारम्भ होकर दशवे दिन यानि दशमी को संपन्न हो जाता है।
इसकी शुरुआत पश्चिमी बंगाल से माना जाता है परन्तु अब यह भारत के अतिरिक्त विश्व के कई देशों में भी मनाया जा रहा है।
यह पूजा लोगों की भावनाओं से जुड़ा धर्म और संस्कृति का उत्कृष्ट समागम है।
इस पर्व से जुड़े पखवाड़ा को देवी पक्ष या देवी पखवाड़ा कहा जाता है।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची-
कुम्भ मेला,छऊ नृत्य,नवरोज,बुद्धिष्ठ चैंट/जप,रम्मन,योग,वैदिक चैंट/जप,संस्किर्तन,संस्किर्तन,मुदियेट,कूदियट्टम,कालबेलिया, पीतल और तांबे के बर्तन बनाने का पारंपरिक शिल्प।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत-इसमें लोक कथाओं,परम्परों,रीति रिवाजों,विश्वासों,भाषा और ज्ञान जैसी गैर भौतिक सम्पदाओं को शामिल किया जाता है,जो पूर्वजों से विरासत में मिली हैं और वंशजों को दी गई हैं।